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Sunday 6 January 2013

अनीमिया



रक्त की कमी
रक्त की कमी को अनीमिया (Anemia / उच्चारण = अ-नी-मिया) के नाम से जाना जाता है। रक्त की कमी होने से शरीर के विभिन्न अंगों को ऑक्सिजन की पूर्ति नहीं हो पाती, क्योंकि ऑक्सिजन रक्त कोशिकाओं द्वारा ही पहुंचाई जाती है। रक्त की कमी वस्तुतः लौह (Iron) पदार्थ की कमी से होती है। लौह से हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) विकसित होता है, जो लौह युक्त प्रोटीन है और रक्त को उसकी लालिमा प्रदान करता है। यह हीमोग्लोबिन ही ऑक्सिजन को फेफड़ों से शरीर के सभी भागों तक पहुंचाता है।

लौह की कमी के कारण इस प्रकार हैं

  • अत्यधिक माहवारी 
  •  गर्भावस्था 
  •  पेट में घाव (Ulcers in stomach)
  • आँतों में गाँठें अथवा घातक रोग (Colon polyps or colon cancer) 
  •  वंशानुगत रोग 
  •  भोजन में लौह, विटामिन B १२ अथवा फॉलिक एसिड की मात्रा की कमी 
  •  रक्त संबंधी रोग जैसे sickle cell anemia और thalassaemia या प्राण-घातक(cancer) रोग 
  •  Aplastic anemia
रक्त की कमी रोगी को कमजोरी, ढीला बना देती है, सिर में चक्कर आना अथवा चिड़चिड़ाहट भी इसी के लक्षण हैं। रक्त की जांच द्वारा रक्त की कमी के बारे में पता लगाया जा सकता है। यह रोग कई प्रकार का होता है और उसका उपचार भी उस के प्रकार पर निर्भर करता है। 
अनीमिया रोग क्या है?
अनीमिया रोग अर्थात रक्त की कमी ऐसा रोग है जिसमें आपके के रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य से कम मात्रा में पाई जाती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा की कमी से भी अनीमिया पाया जाता है। रक्त की अत्यधिक कमी अथवा अधिक समय तक अनीमिया होने पर हृदय, मस्तिष्क एवं शरीर के अन्य अंगों को हानि पहुँच सकती है। भीषण अनीमिया घातक भी हो सकता है।
लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं, तश्तरीनुमा कोशिकाएं (platelets) एवं द्रव्य पदार्थ, इन सभी के सम्मिलित रूप को रक्त कहते हैं। लाल रक्त कोशिकाएं अपने साथ ऑक्सिजन को विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं और कार्बन-डाई-ऑक्साइड को उन अंगों से निकालती हैं। ये कोशिकाएं हड्डियों की मज्जा (bone marrow) में विकसित होती हैं।   
श्वेत कोशिकाएं एवं तश्तरीनुमा कोशिकाएं भी मज्जा में ही विकसित होती हैं। श्वेत कोशिकाएं संक्रमण रोधी (resistance against infection)होती हैं। तश्तरीनुमा कोशिकाएं आपस में जुड़ कर धमनियों में कटाव अथवा रक्त के रिसाव पर थक्का (blood clot) बना उसे रोक देने में सहायक होती हैं। एक विशेष अनीमिया में इन तीनों प्रकार की कोशिकायों की कमी हो जाती है।
अनेक प्रकार के अनीमिया रोग कम प्रवत्ति, छोटे समय के लिए प्रकट होते हैं और उनका आसानी से उपचार हो जाता है। कुछ प्रकार के अनीमिया की रोक तो केवल पौष्टिक भोजन से ही संभव है। अन्य का उपचार खाद्य पदार्थों से संभव है। कुछ प्रकार के अनीमिया गंभीर रूप दर्शाते हैं, यदि उनका निदान एवं उपचार नहीं हुआ तो वे अधिक अवधि तक सताते, गंभीर और घातक भी हो सकते हैं।

यदि आपको रक्त की कमी / अनीमिया के लक्षण हैं, अपने चिकित्सक से सुनिश्चित करने के लिए परामर्श अवश्य करें।     

अनीमिया के  कई अन्य प्रकार हैं जो किसी विशेष कारण से उत्पन्न होते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
·        Aplastic अनिमिया
·        रक्त के बहाव से
·        Fanconi अनीमिया 
·        Folic एसिड की कमी से अनीमिया
·        Hemolytic (रक्त के नष्ट होने से)अनीमिया
·        लौह रहित अनीमिया
·        Pernicious (घातक) अनीमिया
·        Sickle अनीमिया
·        Thalassemia   

अनीमिया रोग क्यों होता है ?
इस के तीन मुख्य कारण हैं :
1.   रक्त का रिसाव / बहाव
2.   नवीन लाल रक्त कोशिकाओं कम उत्पादन होना  
3.   नवीन लाल रक्त कोशिकाओं के बनने की मात्रा से अधिक मात्रा में उनका नष्ट होना
किंचित व्यक्तियों में इन सभी कारणों के मिलेजुले प्रभाव को देखा जाता है।

रक्त का रिसाव
रक्त का अत्यधिक रिसाव अनीमिया का मुख्यतम कारण है, मुख्यतया लौह रहित अनीमिया का। रक्त का रिसाव कुछ समय अथवा अधिक समय तक हो सकता है।
अत्यधिक माहवारी अथवा पाचक तंत्र या मूत्र तंत्र में बजी रक्त का रिसाव की संभावना है। शल्य चिकित्सा, घाव में से रिसाव अथवा प्राण-घातक (cancer) रोग भी रक्त रिसाव के कारण हैं। अत्यधिक रिसाव  के कारण अंततः अत्यधिक मात्र में लाल रक्त कोशिकाओं की हानि से अनीमिया उत्पन्न हो जाता है।
लाल रक्त कोशिकाओं का कम उत्पादन होना

Tuesday 20 November 2012

छाल रोग / सोरियासिस


छालरोग (Psoriasis) क्या है?
त्वचा की कोशिकाएं प्रायः एक माह की अवधि के पश्चात झड़ जाती हैं एवं नई कोशिकाएं उनका स्थान लेती हैं, परन्तु सोरियासिस अथवा छालरोग में इन नई कोशिकाओं की वृद्धि अत्यधिक तेजी से होती है और कुछ ही दिनों में त्वचा पर नई सतह जम जाती है। कोशिकाओं की पुरानी सतह हट भी नहीं पाती कि उस के ऊपर नई सतह जम जाती है इस तरह कोशिकाओं के ढेर लग जाते हैं और वे मछ्ली या सफ़ेद आटे की भांति त्वचा पर से झड़ती रहती हैं। इस रोग में लाल रंग के धब्बों पर से सफ़ेद चूरा सा छूटता रहता है।
छालरोग के धब्बे अथवा चकत्ते अक्सर कोहनी, घुटनों, पैरों, सिर, पीठ के निचले भाग, हथेलियों और पैरों के तलवों पर पाये जा सकते हैं। नाखूनों, गुप्तांगों और मुँह के भीतर भी इसके धब्बे मिल सकते हैं।

छालरोग किन किन को हो सकता है?
अक्सर इसे वयस्कों में ही देखा गया है और यह रोग किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। यह वंशानुगत नहीं है परन्तु एक परिवार में कई सदस्यों को प्रभावित कर सकता है।
क्या सोरियसिस संक्रामक है ?
कदापि नहीं, आपको किसी के छूने से यह रोग न आपको होगा और न ही किसी दूसरे व्यक्ति को।  

सोरियासिस (Psoriasis) के लक्षण क्या हैं?
इसके लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं :
त्वचा पर गुलाबी या लाल रंग के उठे हुए धब्बे
सूखी, परतदार त्वचा
त्वचा पर जलन
मोटे नाखून, नाखूनों पर छोटे-छोटे खड्डे
त्वचा के लाल धब्बे पर मवाद भरे छाले (गंभीर अवस्था में)
धब्बे अधिकतर घुटने और कोहनी की त्वचा पर दिखाई देते हैं, हालांकि छालरोग सिर, हथेलियों, पैरों के तलवों, मुँह और जोड़ों सहित शरीर पर कहीं भी प्रकट हो सकता है।

छालरोग के क्या कारण हैं?
सोरायसिस प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ शुरू होता है; त्वचा की ‘T’ कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार है जो प्रतिरक्षा का हिस्सा है और बैक्टीरिया अथवा वाइरस के हमले से त्वचा की रक्षा करती हैं। छालरोग में कोशिकाएं गलती से त्वचा की सामान्य कोशिकाओं पर आक्रमण कर बैठती हैं और फिर सामान्य कोशिकाएं तेजी से उत्पादन करने लगती हैं नई कोशिकाओं। इस रोग में कभी तो धब्बे पूरी तरह से अदृश्य हो जाते हैं और कभी अधिक हो जाते हैं।

छालरोग में वृद्धि के कारण हैं ;

संक्रमण (गला खराब होना)
प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने वाले रोग
तनाव
कुछ दवाएं जैसे मलेरिया और उच्च रक्तचाप की दवाएं
त्वचा पर
ठंड के मौसम से
धूम्रपान / मदिरा पान से

सोरायसिस का निदान कैसे करें?
सोरायसिस का निदान करने के लिए त्वचा विशेषज्ञ प्रायः देख कर ही बता देते हैं कि सोरियसिस है अथवा नहीं, कभी-कभी कठिन हो सकता है ; ऐसी स्थिति में त्वचा के एक टुकड़े की जांच (Skin Biopsy) प्रयोगशाला में की जा सकती है।

सोरायसिस किस तरह रूप बदलती है ? 
उस पर उपचार निर्भर करता है:
गंभीर बीमारी है अथवा नहीं
छालरोग के धब्बे का आकार पर
छालरोग के प्रकार पर
कुछ रोगी उपचार की गर्मी सहन नहीं कर पाते
सभी उपचार एक सरीखे नतीजे नहीं देते। इसलिए यदि आप पर इलाज का असर नहीं हो रहा या लक्षण और बुरे हो गए हैं, अपने चिकित्सक की मदद लें।

  अपनी त्वचा की नमी को बनाए रखें और इसके लिए किसी भी तैलीय क्रीम अथवा लेप लगाएँ। लेप लगाने के उपरांत धब्बों को प्लास्टिक की परत से कुछ घंटों के लिए ढक दें, इससे नमी को त्वचा में प्रवेश करने में मदद मिलेगी। को-र्टिको-स्टेरोइड (Corticosteroid) नामक दवाएं का प्रयोग, गंधक के पानी में स्नान और सिर हेतु विशेष शैम्पू का प्रयोग मदद कर सकते हैं। लेप हेतु मलहम / क्रीम से सूजन और त्वचा के बदलने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद मिलती है
·        प्रतिरक्षा शक्ति की तीव्रता कम हो जाती है
·        त्वचा पर कोशिकाओं के ढेर को हटाने में मदद मिलती है

पराबैंगनी किरण द्वारा उपचार :
सूर्य और कृत्रिम पराबैंगनी प्रकाश से प्राकृतिक पराबैंगनी प्रकाश छालरोग (psoriasis) के उपचार हेतु प्रयोग की जाती हैं। इस उपचार को पूवा (PUVA) कहा जाता है, एक अन्य दवा (psoralen) के सेवन के उपरांत त्वचा प्रकाश के प्रति संवेदनशील हो जाती है और ये किरणें अपनी गर्माहट से धब्बों को मिटाने में सहयोग देती हैं।  

प्रणालीगत चिकित्सा:
(Psoriasis) सोरियसिस के गंभीर मामलों में अपने चिकित्सक से एंटी-बायोटिक दवाओं, गोलियों के रूप के बारे में परामर्श अवश्य लें। धूप छालरोग में अच्छी मदद करती है, परंतु अधिक धूप हानिकारक हो सकती है। अन्य दवाओं के साथ-साथ आपके चिकित्सक आपको धूप दिखाने की सलाह अथवा पराबैंगनी किरणों के सेक की सलाह दे सकते हैं। psoralen नामक एक दवा के सेवन के उपरांत इन किरणों से धब्बे को सेक दिया जाता है। यह रोग को पूर्णतया समाप्त नहीं कर पाता। समय-समय पर आवश्यकता अनुसार आपके विशेषज्ञ दवा एवं उसके प्रयोग की विधि बदल सकते हैं।
मिली जुली चिकित्सा :
जब आप त्वचा पर लेप, प्रकाश, प्रणालीगत उपचार आदि का प्रयोग करते हैं, ऐसे समय पर आप प्रत्येक दवा की पूर्ण मात्रा से कम मात्रा में ही लाभ पा सकते हैं। आपको मिश्रित चिकित्सा से अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
 
क्या छाल रोग उपचार के उपरांत समाप्त हो जाएगा?
आम तौर पर छालरोग में उपचार के बाद सुधार होगा, परन्तु यह कभी पूरी तरह से जाते नहीं। ददोरे / चकत्ते से बुरादे के झड़ने में कमी आने पर समझें कि लाभ हो रहा है। धब्बों के मोटापे में सुधार होते होते २ से ६ सप्ताह का समय लग सकता है, तथापि लालिमा के सुधार में अनेक महीने लग सकते हैं। ऐसा भी प्रतीत हो सकता है कि कुछ धब्बे सुधर रहे हैं और उसी समय कुछ धब्बे बढ़ते जाते हैं।    
उपचार विधि में एक प्रकार के निरंतर उपयोग के बाद, संभव है कि छालरोग पर दवा प्रभावी न रहे। यदि ऐसा हुआ तो आपके चिकित्सक आपकी दवा अथवा चिकित्सा को बदल सकते हैं।

सोरायसिस के अनुसंधान में नया क्या है?
चिकित्सक निम्न विषयों पर शोध करके छालरोग के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं :
·   वंशानुगत विषयों पर शोध (Gene)
·   प्रतिरक्षा प्रणाली में फेरबदल कर उसके आक्रामक रूप को कम करना
·   मोटापे, उच्च रक्तचाप, मधुमेह का सोरियासिस से संबंध स्थापित करना 

अपने चिकित्सक से इन विषयों पर अधिक जानकारी लें :
·   कौन सा उपचार मेरे लिए सबसे अच्छा है?
·   क्या मुझे अक्सर दवाएं बदलनी होंगी?
·   कुछ घरेलू दवाएं जो मेरी खुजली अथवा दर्द का निवारण कर सकें
·   यदि मेरे लक्षण और बढ़ जाएँ, मैं अपने चिकत्सक से कब संपर्क करूँ?
·   कोई विशेष शैम्पू जिसे मुझे प्रयोग करना चाहिए?
·   क्या आप एक अच्छा लोशन सुझा सकते हैं?
·   क्या जीवनपर्यंत मुझे दवा का सेवन करना पड़ेगा ?
·   मुझे सोरायसिस है क्या मेरे बच्चों को भी यह रोग लगेगा ?
·   क्या मुझे अपनी त्वचा की देखभाल किसी भी परिवर्तन की आवश्यकता है ?
·   क्या मुझे अपने क्षेत्र में किसी सहायता संगठन की मदद मिलेगी ?

Thursday 1 March 2012

ज्वर (बुखार )


ज्वर अथवा बुखार आमतौर पर एक संकेत है कि आपके शरीर में सामान्य से कुछ हट कर घट रहा है। एक वयस्क के लिए, बुखार असुविधाजनक हो सकता है, परन्तु बुखार आम तौर पर 103 डिग्री F के तापमान या उससे अधिक हो तभी गंभीर होता है। नवजात शिशुओं एवं छोटे बच्चों के लिए, थोड़ा तापमान ही एक गंभीर संक्रमण (infection) का संकेत हो सकता है।
एक छोटी सी बीमारी उच्च तापमान के ज्वर का कारण हो सकती है, और गंभीर बीमारी में भी कम तापमान का ज्वर हो सकता है, अतः तापमान का अधिक अथवा कम होना अंतर्निहित रोग की गंभीरता को नहीं दर्शाता। 

साधारणतया ज्वर कुछ दिनों के भीतर चला जाता है। सामान्य दवाइयाँ तापमान को कम करने में मदद करती हैं, लेकिन कभी कभी इसे अनुपचारित छोड़ देना चाहिए। ज्वर की मदद से आपका शरीर संक्रमण से मुक़ाबला करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा होता है।
 

ज्वर के लक्षण
जब आपके शरीर का तापमान अपनी सामान्य सीमा से ऊपर बढ़ जाए तब ज्वर कहलाता है। सामान्य तापमान ९८.६ F के औसत में होता है। ज्वर के अतिरिक्त लक्षण आपके ज्वर के अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करते हैं, इनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं:

·        पसीना आना  
·        कंप कंपी आना
·        सिरदर्द
·        मांसपेशियों में दर्द
·        भूख न लगना
·        शरीर में पानी की कमी हो जाना
·        सामान्य कमजोरी

उच्च तापमान (१०३ F और १०६ F के बीच) में निम्न लक्षण भी पाये जा सकते हैं :
·        मतिभ्रम
·        चिड़चिड़ापन
·        मिर्गी आना
·        शरीर में जल की कमी

चिकित्सक की सहायता कब लें ?
ज्वर मात्र के लिए चिकित्सक को बुलाना अथवा चिंता का विषय नहीं हो सकता। अपितु किसी परिस्थिति में आपको अपने शिशु
, बच्चे या अपने आप के लिए चिकित्सा सलाह लेनी भी पड़ सकती है।

तापमान को कैसे मापें ?
अपने या अपने बच्चे के तापमान की जाँच हेतु, आप मुँह, गुदा अथवा कान तापमापी (थर्मामीटर) में से किसी एक को चुन सकते हैं। आप काँख के तापमान के लिए एक मुँह के तापमापी का उपयोग कर सकते, हालांकि यह सबसे उत्तम विधि नहीं है:
·  
काँख में तापमापी रखें और सीने पर अपनी या अपने बच्चे की बाहों
को इस तरह रखें कि एक बांह दूसरी बांह पर से तिरछे कोण बनाए
चार से पांच मिनट ठहरें। काँख का तापमान मुँह के तापमान से कुछ कम होता है।
अपने चिकित्सक से, तापमापी का वास्तविक माप एवं शरीर के 
किस अंग से तापमान लिया गया है, इसका उल्लेख अवश्य करें :

नवजात शिशु
शिशुओं और बच्चों में ज्वर वयस्कों की तुलना में अधिक चिंता का कारण है। यदि आपके शिशु को १०१F  या उससे अधिक तापमान है तो चिकित्सक से सलाह लें इसके अतिरिक्त यदि आपके शिशु :

·*को ज्वर है और उसकी उम्र ३ माह से कम है
·*खा या पी नहीं रहा है
·*ज्वर और अकारण चिड़चिड़ापन जो थोड़ा हिलाने या कपड़े बदलने के दौरान प्रकट हो रही है
·*ज्वर है और वह सुस्ती और अचेतावस्था में है {शिशुओं और २ 
साल की उम्र से छोटे बच्चों में, मस्तिष्क ज्वर के लक्षण हो सकते 
हैं। यदि आप चिंतित हैं कि आपके बच्चे को मस्तिष्क ज्वर 
(मैनिंजाइटिस) हो सकता है, अपने बच्चे को चिकित्सक के पास तुरंत 
ले जाएं।}
* एक नवजात शिशु है और उसका तापमान सामान्य तापमान से (९७ F)   से कम है।[ छोटे बच्चे बीमार पड़ने पर अपना तापमान नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं और उनका शरीर गरम होने के बजाय ठंडा हो जाता है।]
ज्वर से पीड़ित बच्चे
यदि आपके बच्चे को ज्वर है, परंतु वह सचेत है, आप की आँखों, 
चेहरे के भावों एवं ध्वनि पर प्रतिक्रिया करता है-  जल व भोजन  
ग्रहण कर रहा है और खेल रहा है तो चिंतित होने की आवश्यकता 
नहीं है।
 अपने बच्चे के चिकित्सक से कब संपर्क करें    :
  • यदि बच्चा उदासीन या चिड़चिड़ा हो, बार बार उल्टी करता हो, अत्यधिक सिर दर्द या पेट में दर्द हो, या किसी अन्य कारण से परेशान हो
  • बंद वाहन में छोड़ देने के उपरांत ज्वर से पीड़ित है तो तुरंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएं। 
  • २ वर्ष से कम आयु के बच्चे को एक दिन से अधिक ज्वर आ रहा है अथवा २ वर्षों अधिक आयु के बच्चे को ३ दिनों से अधिक ज्वर रहा है। 
प्रतिरक्षा ( Immunity) की समस्या या पहले से किसी बीमारी से पीड़ित बच्चे के लिए विशेष परिस्थितियों में मार्गदर्शन के लिए अपने बच्चे के चिकित्सक से पूछें। आपके बच्चे ने यदि कोई नदवा का सेवन आरंभ किया है तब बालरोग विशेषज्ञ सावधानियों की सलाह दे सकते हैं

 ज्वर से पीड़ित वयस्क
अपने चिकित्सक से संपर्क करें यदि  :
  • आपका तापमान 103 F से अधिक हो
  • आपको तीन दिनों से अधिक समय से ज्वर है 
इसके अलावा यदि निम्नलिखित कोई भी संकेत या लक्षण ज्वर के साथ हो, तत्काल चिकित्सा सहायता लें :
  • अत्यधिक सिर दर्द
  • गले में अत्यधिक सूजन
  • त्वचा पर असामान्य लाल दाने, विशेष रूप से अगर वे तेजी से फैल रहे हैं।
  • प्रकाश का सामना करने से आँखों में असामान्य परेशानी
  • सिर को आगे झुकाने पर गर्दन में दर्द और अकड़न
  • मानसिक भ्रम, लगातार उल्टी
  • साँस लेने में कठिनाई या सीने में दर्द
  • शून्यता का भाव या चिड़चिड़ापन
  • पेट में दर्द या मूत्र करते समय दर्द
  • कोई भी अतिरिक्त अस्पष्ट संकेत या लक्षण

ज्वर के कारण  
 हमारे शरीर का तापमान नित दिन बदलता रहता है यह सुबह कम, दोपहर के बाद और शाम को अधिक होता है। वास्तव में, हमारा सामान्य तापमान ९७F व ९९F के मध्य होता है। अधिकतर ९८.६ F को सामान्य माना जाता है, यह एक डिग्री अधिक अथवा कम भी हो सकता है। मासिक धर्म या अत्यधिक व्यायाम से तापमान प्रभावित हो सकता है।
ज्वर के कारण निम्न हो सकते हैं :
  • विषाणु संक्रमण (वाइरस)
  • जीवाणु संक्रमण (बैक्टीरियल इन्फ़ैकशन )
  • गर्मी की तपन से थकान
  • धूप से जलना
  • गठिया जैसे कुछ अन्य रोग  
  • अत्यधिक वस्त्रों का उपयोग  
  • घातक कैंसर की गांठ
  • जीवाणुरोधी (एंटीबायोटिक) दवाएं, उच्च रक्तचाप या मिर्गी के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जानेवाली कुछ दवाएँ
  • डिप्थीरिया, टिटनेस के टीकाकरण के बाद,
  कभी कभी ज्वर के कारण की पहचान संभव नहीं होती। यदि आप को तीन सप्ताह से अधिक समय से १०१F से अधिक तापमान है और अपने चिकित्सक से व्यापक जांच के बाद कारणों का पता लगाने में सक्षम नहीं है, तब यह अज्ञात मूल का ज्वर हो सकता है। 

सुनिश्चित करिए क्या
यह ज्वर ही है ?
माथे या हाथ
की त्वचा पर हल्के से रख कर आप बता सकते हैं अपने बच्चे को बुखार है अथवा नहीं। हालांकि, तापमान लेने की इस विधि की गुणवत्ता तापमान महसूस कर रहे व्यक्ति पर निर्भर है और इसमें त्रुटि होने की संभावना है।
किसी विश्वसनीय तापमापी उपकरण से ताप को मापें (बच्चे का तापमान इनमें से एक या अधिक स्तर पर हो )    
*१००.४ F (rectally ) (नीचे) 
*९९.५ F (मुंह में)
*९९ F (काँख में)

तापमान अधिक होने एवं रोग की गंभीरता में कोई संबंध नहीं हैसाधारण सर्दी, जुकाम या अन्य वायरसंक्रमण कभी कभी तेज बुखार के साथ उभर सकता है(१०२ ° F  से १०४ ° F), लेकिन यह आम तौर पर कोई गंभीर समस्या का संकेत नहीं है। दूसरी ओर कई बार गंभीर संक्रमण में कोई बुखार नहीं होता यहाँ तक कि शिशुओं में विशेष रूप से असामान्य रूप से तापमान कम हो सकता है बुखार में तापमान बढ़ता और गिरता है, तापमान बढ्ने पर सर्दी लगती है इससे कंप-कंपी होती है क्योंकि शरीर अपने बचाव हेतु गर्माहट पैदा रहा है। बुखार के बाद जब शरीर का तापमान गिरना आरंभ होता है तब पसीना आता है।

कभी कभी बुखार के समय बच्चे सामान्य से अधिक तेजी से सांस लेने लगते हैं और उनके दिल की धड़कन तेज हो जाती है। यदि आप के बच्चे को साँस लेने में कठिनाई हो रही है, साँस तेज चल रही है अथवा ज्वर के उतरने के बाद भी साँस तेज चलती रहे तो अपने चिकित्सक से संपर्क करें।

बुखार के बाद जटिलताएं हो सकती हैं   
-शरीर में गंभीर (सूखा) निर्जलीकरण
-मतिभ्रम
-६ महीने से ५ साल की उम्र के शिशुओं में बुखार के उपरांत मिर्गी

बुखार के उपरांत मिर्गी 
ज्वर के बाद की मिर्गी में आमतौर पर चेतना खो जाती है और हाथ-पैर जोर से हिलने लगते हैं। शिशुओं के माता-पिता को खतरा प्रतीत होता है परंतु यह मिर्गी स्वतः शान्त हो जाती है और उसके उपरांत कोई हानि नहीं होती।  

यदि मिर्गी का दौरा पड़ रहा हो:
बच्चे को करवट से अथवा पेट से, भूमि पर लिटा दें, किसी भी धारदार अथवा नुकीली वस्तु को बच्चे के पास से हटा दें, तंग कपड़ों को थोड़ा ढीला करें चोट से बचने के लिए रोगी को पकड़ कर रखें बच्चे के मुंह में कुछ भी रखने की कोशिश न करें, अधिकांशतः मिर्गी अपने आप समाप्त हो जाती है। अपने बच्चे को मिर्गी के तुरंत बाद चिकित्सक के पास ले जाएँ जिससे बुखार के कारण का पता किया जा सके। यदि मिर्गी १० मिनट के बाद भी समाप्त न हो तो आपातकालीन चिकित्सा सहायता लें। अपने चिकित्सक से मिलने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि बुखार कब आरंभ हुआ, तापमान कितना था। यदि परिवारके किसी अन्य सदस्य को भी बुखार आ रहा है। यदि कहीं दूरगामी यात्रा की हो बच्चे को दी गई सभी दवाओं (विटामिनों और ताकत की दवाओं) के नाम लिख लें 

बुखार के क्या-क्या कारण हो सकते हैं? 
क्या बुखार का कोई अन्य कारण हो सकता है?
किस प्रकार के परीक्षण की आवश्यकता है?
प्राथमिक दृष्टि में क्या उपचार हो सकता है?
क्या तापमान कम करने के लिए दवा आवश्यक है?
क्या किसी परहेज की आवश्यकता है?
क्या कोई लिखित/मुद्रित जानकारी उपलब्ध है जिसे साथ
घर ले जा सकते हों?

यदि कुछ समझ में नहीं आए अथवा शंका हो तो चिकित्सक / परिचारिका से पूछने में संकोच न करें।

बुखार के कारण को सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सक आपसे कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं: 

बुखार के लक्षण कब दिखे?
आपने अपने या अपने बच्चे के तापमान लेने के लिए किसका उपयोग किया?
क्या आपने या आपके बच्चे ने तापमान को कम करने हेतु कोई दवा का सेवन किया? 
बुखार के अतिरिक्त कोई अन्य लक्षण आप अनुभव कर रहे हैं 
वे कितने गंभीर हैं
क्या आपको या आपके बच्चे को पहले से ही कोई पुराना रोग है?
आप या आपके बच्चे किन दवाओं को नियमित रूप से लेते हैं? क्या आप या आपके बच्चे किसी रोगी के आसपास गए हैं? 
क्या आपकी या आपके बच्चे की हाल ही में शल्यचिकित्सा (सर्जरी) हुई है?

क्या आप या आपके बच्चे ने हाल ही में देश के बाहर यात्रा की ? लक्षणों में सुधार करने के लिए आप क्या करते हैं ?

परीक्षण और निदान
चिकित्सक आपके बुखार के लक्षणों एवं शारीरिक परीक्षण के आधार पर उसके संक्रमण ( infectious) अथवा संक्रमण-रहित (noninfectious) कारण की खोज करेंगे। रक्त परीक्षण की आवश्यकता भी हो सकती है। यदि आपको हल्का ज्वर है और ३ सप्ताह या उससे अधिक अवधि से है और कोई अन्य लक्षण नहीं हैं, ऐसी परिस्थिति में चिकित्सक रक्त परीक्षण के अतिरिक्त आपके एक्स-रे की सलाह देंगे। 

उपचार और दवाएँ 
हल्के बुखार हेतु, चिकित्सक समान्यतया किसी दवा की सलाह नहीं देते, क्योंकि ऐसा करने से मूल रोग को पहचानने में देरी होगी अथवा कारण पता करना कठिन हो जाएगा। 
विशेषज्ञों का मत है कि बुखार का आक्रामक उपचार शरीर की प्रतिरोधी शक्ति के साथ खिलवाड़ है। जुकाम और अन्य वाइरस संक्रमण शरीर में सामान्य तापमान पर ही जीवित रहते हैं। हल्के बुखार से शरीर किसी वाइरस को निकाल बाहर करने का प्रयास कर रहा होता है।
साधारणतया उपलब्ध दवाएं:
तापमान अधिक होने की स्थिति में चिकित्सक कुछ दवाओं कि सलाह दे सकते हैं जैसे –
  1. पैरासेटामॉल (Crocin) या ब्रूफेन (Brufen), इन दवाओं को चिकित्सक के निर्देश अथवा दवा पर अंकित निर्देशों के अनुसार और निर्देशित मात्रा में ही लें। अधिक मात्रा अथवा लंबी अवधि तक इन दवाओं के उपयोग से यकृत (liver) या गुर्दा (kidney) को हानि पहुँचती है और यह जानलेवा भी हो सकती हैं। यदि दवा के सेवन के उपरांत तापमान में कमी न हो तो और अधिक दवा न दें, अपितु चिकित्सा परामर्श लें। १०२ से नीचे के तापमान के लिए इन दवाओं का प्रयोग न करें।
  2. एस्प्रिन (Aspirin ) केवल वयस्कों के लिए – एस्प्रिन बच्चों के लिए वर्जित है, क्योंकि यह उनके यकृत के लिए घातक हो सकती है।
चिकित्सक परामर्श पर दी जाने वाली दवाएं 
आपके बुखार के कारण और विशेषतया आपके सीने या कंठ में जीवाणु संक्रमण (bacterial infection) को ध्यान में रखकर चिकित्सक आपको जैवनाशक (antibiotic) दवा की सलाह दे सकते हैं। ध्यान देने योग्य है कि ये दवाएं विषाणु संक्रमण (viral infection) का उपचार नहीं कर सकतीं। विषाणुओं के प्रति प्रभावी विषाणुरोधक (antiviral) दवाओं की मात्रा अधिक नहीं है, जबकि अधिकतर विषाणु संक्रमण का सबसे सक्षम उपाय विश्राम एवं जल की आपूर्ति है।  
  
घरेलू उपाय
आप अपने घर में तापमान को कम करने हेतु घर में उपलब्ध कई उपाय कर सकते हैं जो आपको सुविधाजनक भी लगेंगे:
  • प्रचुर मात्रा में जल की आपूर्ति बनाए रखें। ज्वर से शरीर में जल की कमी हो जाती है, इसलिए पानी, फलों के रस या तरल पदार्थों - शोरबा/ झोल /सूप का सेवन करते रहें। १ वर्ष से कम शिशु को पीने का घोल पिलाएँ। इन सब पदार्थों से पानी और नमक, शरीर के अनुरूप मात्रा में मिलता रहता है।  
  • विश्राम। पूर्णतया स्वस्थ होने के लिए शरीर को विश्राम की आवश्यकता होती है और कार्यरत रहने से तापमान बढ़ता है। अपने आपको शीतल रखें अर्थात हल्के वस्त्र पहनें, कमरे का तापमान ठंडा रखें और चादर अथवा हल्के कंबल को प्रयोग करें। यदि तापमान अधिक है तो किसी कपड़े को गुनगुने पानी में भिगोकर उससे सिकाई करें। यदि कंपन होने लगे तो पानी के सेक को रोक दें व शरीर को सुखा लें। शरीर के कंपन से माँसपेशियाँ गर्माहट पैदा करती हैं जिससे तापमान सामान्य हो जाने में मदद मिलती है।
रोकथाम 
बुखार के रोकथाम का सबसे उत्तम उपाय है संक्रमण से बचाव, और इसका आसान तरीका है – अपने हाथों को बारंबार धोते रहना।

आप  स्वयं और परिवार के सभी सदस्यों को हर कार्य के उपरांत हाथ धोने का प्रशिक्षण दें, विशेषतया भोजन से पहले, शौच के बाद, भीड़ भरे स्थान में समय व्यतीत करने, पशुओं को प्यार करने एवं किसी रोगी से मिलने के बाद। बच्चों के सामने हाथ धोने की प्रक्रिया का प्रदर्शन करें, हाथ के आगे, पीछे दोनों ओर, नाखूनों के भीतर साबुन मलें और बहते पानी में उसे साफ करें। यात्रा में अपने साथ हस्त प्रक्षालक (hand sanitiser) रखें, यदि पानी और साबुन की व्यवस्था न हो पाए और हाथों पर मैल न हो तो प्रक्षालक का प्रयोग उचित है। बच्चों को प्रशिक्षित करें कि संक्रमण के द्वार जैसे नाक, आँख और मुंह को हाथ न लगाएँ। उन्हें खाँसते और छींकते समय मुँह को ढक लेने का प्रशिक्षण भी दें।

तापमापी यंत्र (Thermometer)के प्रकार
तापमापी / थर्मामीटर आप जो भी चुनें, सुनिश्चित करें कि आप को उसका उचित उपयोग आता हो। थर्मामीटर के निर्माता की निर्देशों का पालन करें।
समान्यतया डिजिटल थर्मामीटर अविलंब और सटीक तापमान बताते हैं। वे कई आकारों और प्रकार में उपलब्ध हैं और सभी औषधि की दुकानों / फार्मेसियों में उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर, डिजिटल थर्मामीटर आमतौर पर इन तापमान लेने के तरीकों के लिए प्रयोग किया जा सकता है:
मौखिक (मुंह में)
मलाशय (नीचे)
काँख (हाथ के नीचे)
थर्मामीटर को चालित करें और
सभी पुराणी संख्या का माप मिटा दें। अधिकतर डिजिटल थर्मामीटर के एक ओर तापमान संवेदक और विपरीत छोर पर पढ़ने के लिए आसान पटल होता है। इलेक्ट्रॉनिक कान थर्मामीटर मध्य कर्ण के तापमान को मापने के काम आते हैं।

पारा युक्त थर्मामीटर एक समय में उपलब्ध था, लेकिन अब चूंकि पारा, पर्यावरण को हानि पहुंचाता है इसलिए उसका प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
तापमान हेतु युक्तियाँ
किसी भी माता पिता
को एक बच्चे का तापमान लेना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण है जो तय करने में मदद करता है कि बच्चे को संक्रमण है या नहीं।
३ महीने से छोटे बच्चों के लिए, गुदा (rectal) का तापमान सबसे विश्वसनीय माना जाता है। इलेक्ट्रॉनिक कान थर्मामीटर 3 महीने से कम आयु के शिशुओं के लिए अनुशंसित नहीं है क्योंकि उनके कान की नली छोटी व सँकरी होती है।
३ महीने
से ४ वर्ष के बीच के बच्चों के लिए, आप डिजिटल थर्मामीटर का उपयोग करने के लिए गुदा तापमान या इलेक्ट्रॉनिक कान थर्मामीटर का सफल उपयोग कर सकते हैं। काँख का तापमान भी लिया जा सकता है परंतु यह सटीक नहीं होता।
4 साल
से अधिक उम्र के बच्चों के लिए, आप आमतौर पर थर्मामीटर का उपयोग मुख में कर सकते हैं। ध्यान रहे कि जुकाम से पीड़ित बच्चे बंद नाक की वजह से लगातार खांसी करते या मुंह से साँस लेते हैं ऐसे समय उनके मुंह को अधिक समय के लिए बंद करना संभव नहीं है। इन स्थितियों में, आप कान या काँख में तापमापी का प्रयोग कर सकते हैं।

गुदा तापमान
की विधि
माता - पिता बनने से पहले, अधिकतर लोग गुदा के तापमान का नाम लेते ही घबरा जाते हैं। चिंता न करें - यह एक साधारण प्रक्रिया है:
1.
 पेट्रोलियम जेली के रूप में थोड़ी चिकनाहट थर्मामीटर की नोक पर लगाएँ
2.
 अपने बच्चे को लिटाएँ :
- अपनी गोद में
या समतल स्थान पर बच्चे को पेट के बल लिटाएँ और अपनी हथेली पीठ के निचले हिस्से पर रखें या पीठ के बल लिटा कर पैरों को छाती की ओर एवं अपना हाथ जांघों के नीचे रखें  
3.
 अपने दूसरे हाथ से, आधा इंच अथवा एक इंच गुदा में चिकना थर्मामीटर डालें। अगर आप को किसी भी प्रतिरोध लगे तो रुक जाएं।
4.
 अपनी दूसरी और तीसरी उंगलियों के बीच थर्मामीटर को स्थिर करें।  बच्चे को शांत करें और उससे धीमे-धीमे बातें करें
5.
 बीप की आवाज या अन्य संकेत आने पर तापमान पढ़ें।

मुँह के तापमान लेने
की विधि :
यह प्रक्रिया एक बड़े, बच्चे में आसान है जो सहयोग दे सके।
1.
 खाने या पीने के २० से ३० मिनट के उपरांत ही तापमान लें और सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे के मुंह में कोई मिठाई नहीं है।
2.
 थर्मामीटर की नोक जीभ के नीचे रखें और होंठ बन्द कर, उसे स्थिर करें। तापमापी पर काटना या उसे मुंह में रख बातें न करें, आराम से नाक से श्वांस लेते रहें।
3.
 बीप की आवाज या अन्य संकेत के बाद, यंत्र निकाल कर उस पैर अंकित परिणाम लिख लें।

काँख के तापमान की विधि :
यह एक बच्चे के तापमान लेने के लिए सुविधाजनक विधि है।
1.
 अपने बच्चे के वस्त्र उतार दें, और किसी एक बगल में थर्मामीटर को इस तरह रखें कि वह त्वचा को छूए 
2.
 बच्चे के हाथ सीने पर मोड़ दें जिससे थर्मामीटर अपने स्थान पर बना रहे।
3.
 बीप या अन्य संकेत पर पटल पर परिणाम संख्या देखें और उसे लिख लें।

जो भी विधि आप चुनें, ध्यान रहे :
स्नान के
तुरंत बाद या वस्त्रों के ढेर में से निकालने के तुरंत बाद तापमान कभी न लें – इससे  तापमान पर प्रभाव पड़ता है।
तापमान
लेते समय बच्चों को अकेला कभी न छोड़ें।